अवधेशानंद जी गिरि के जीवन सूत्र:

शरीर बीमार होता है तो वो रोग है, मन बीमार होता है तो वो है विकार। ये स्वभाविक है कि हम जीवन भर निरोगी नहीं रह सकते, कभी ना कभी कोई रोग हमें घेर ही लेता है। ऐसे ही मन भी हमेशा निर्विकार नहीं रह सकता, कभी कोई विकार इसे घेर ही लेता है। मन और शरीर इन दोनों को हमेशा निरोगी रखने के लिए हमें बहुत प्रसास करने होते हैं।

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